॥ सच्चासूख ॥
यह संस्था किसी भी धर्म मत, पंथ, संप्रदाय का नेतृत्व नहीं कर रही है। सभी के अंदर बसी हुई आत्मा एक है। उसी को सहृदय प्रणाम।
इस संस्था का काम एक ही है, मानवता की सेवा यानी जीव को शिव में मतलब प्रकृती से छुड़ाके मुक्ती के रास्ते लगाणा। फिर पुरे विश्व में कहीं का भी मानव हो। उसमें, स्त्री-पुरुष, धर्म-कर्म कुछ भी हो। उसकी सेवा की मुख्य उद्देश्य.
शरीर से मन, मन से आत्मा, आत्मा से परमात्मा तक का यानी खुद से खुदा तक का सफर सुखमय और सहजता से हो। और जो ब्रम्हनिष्ठ श्रोत्रीय संत सद्गुरु होते हैं उन तक आप पहुंच जाय यही तो एक प्रमुख उद्देश है। ‘संगीत’ तो सिर्फ माध्यम यानी एक साधन है।
“संगीत से समाधान यानी समाधि”
बिना परिश्रम से आप सिर्फ संगीत से ही समाधान यानी समाधी तक पहुंच सकते है। नहीं तो समाधी अतिकठीण है। “गुरूनाम आधार ही संगीत है।”
अगर आपको संगीत सिखने कि ईच्छा जागृत हो गई तो समझो परमपिता परमात्मा कि कृपा आपके ऊपर हो गई।
किसी भी, ब्रम्ह ज्ञानी गुरु मुख से सुन के संयम सदाचार से आचरण करने लगेंगे तो भगवद् प्राप्ती (ज्ञान) सहज है। मात्र एक गुरु के शिष्य को दूसरे गुरु की निंदा नहीं करनी चाहिये, क्योंकी गुरु कोई शरीर धारी पुरुष नहीं होता, वह एक तत्व होता है, और वो ईश्वर से जरा भी कम नहीं होता, बल्की शिष्य के लिए ईश्वर से भी श्रेष्ठ होता है। वह गुरु शरीरधारी यानी आकारी होके भी निराकार की पहचान करा देता है! ईश्वर प्राप्ती के मार्ग में गुरु, सत्साहित्य, संत्संग, और संयम, सदाचरण बहोत आवश्यक है।
सत्साहित्य : आप किसी भी धर्म, मत, पंथ, संत संप्रदाय का आश्रय ले सकते है। सिर्फ उसमे “मुक्ती ही साध्य चाहिये, फिर साधन कुछ भी हो।
प्रथम प्राधान्य: श्रीमद्भगवद्गीता (यथार्थ गीता)
सभी वेद, उपनिषद, सभी महापुरुषों की गीता जैसे, अष्टावक्रगीता, गणेश गीता, अवधुत गीता, व्यासगीता, ज्ञानेश्वरी गीता, ईश्वर की ओर, जीवनरसायन, जीवनविकास, प्रेरणाज्योत, दिव्यप्रेरणाप्रकाश, गागर में सागर, आत्मयोग, धम्मपद, सदगुरु बोध, दासबोध, सच्चा सुख, पुरुषार्थ परम देव, मन को सीख, श्री नारायण स्तुति इत्यादि।
विशेष : गीता प्रेस का कोई भी पुस्तक लाभदायक….
चिंतनिय ग्रंथ : पंचीकरण, अमृतानुभव, विचार सागर, विचार चंद्रोदय, योगवसिष्ठ रामायण, विवेक चुडामणि, ब्रम्हरामायण, वृत्ति प्रभाकर इत्यादि।
स्वरज्ञान और आत्मज्ञान के लिए कही हिमालय, गुफा, जंगल जाने की जरूरत नहीं है। किसी भी संगीत के सात्विक साधक को देखो तो उनके दो गुरु दिखाई देते हैं।
सांगितिक – (प्रकृति) ज्ञान
अध्यात्मिक : (परमचैतन्य) ज्ञान
स्वर एवं आत्मज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है। और इसीलिए मनुष्य जन्म मिला है।
–प्रकृती, तुलसी पुजन — 25 दिसंबर
—परमचैतन्य, मातृपितृ पुजन – 14 फरवरी